विवेचनात्मक व उपदेशात्मक संग्रह >> छत्तीसगढ़ के विवेकानन्द छत्तीसगढ़ के विवेकानन्दकनक तिवारी
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छत्तीसगढ़ के विवेकानन्द...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
छत्तीसगढ़ के विवेकानंद आधुनिक भारतीय मनीषा के अग्रणी उन्नायको में से एक स्वामी विवेकानंद विषयक इस पुस्तक का आधार उनके जीवन का वह समय है जो उन्होंने छत्तीसगढ़ की भूमि पर रायपुर में बिताया ! उनकी ओजस्वी चेतना के जो स्फुलिंग 11 सितम्बर 1893 को शिकागो में विस्फोटक ढंग से दुनिया के सामने आए, उनके कुछ बीज निश्चय ही किशोरावस्था के उन ढाई वर्षों में भी पड़े होंगे जब उन्निसवी सदी के छत्तीसगढ़ के अभावो का साक्षात्कार उनके आकार लेते मानस से हुआ होगा ! यह आश्चर्यजनक है और दुर्भाग्यपूर्ण भी कि विवेकानंद के अधिकतर जीवनीकारो ने उनके इस छत्तीसगढ़ प्रवास को अनदेखा किया है ! इसलिए ऐसे तथ्य भी सामने नहीं आ सके जिनसे उनके जीवन में 1875 से 1877 के इस कालखंड के महत्व को रेखांकित किया जा सके ! लेकिन क्या ये सच नहीं है कि व्यक्ति के जीवन में किशोरावस्था के अनुभवों की भूमिका निर्णायक होती है ! ज्ञात हो कि विवेकानंद उस समय 12 वर्ष के थे, जब उनके पिता उन्हें रायपुर लेकर आये और दो वर्ष से ज्यादा वे यहां पर रहे ! लोक विश्वास है कि जबलपुर से रायपुर बिगड़ी से आते हुए ही उन्हें माँ की गोद में लेटे हुए दिव्य ज्योति के दर्शन हुए थे ! यह भी माना जा सकता है कि इसी दौरान उनका परिचय हिंदी और छत्तीसगढ़ी से हुआ और यहाँ पर उन्हें भारत की गुरबत की वह झलक भी मिली जो उनके व्याकुल चिंतन आधार बनी ! यह पुस्तक विवेकानंद के छत्तीसगढ़ से सम्बन्ध के साथ-साथ उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व और वैचारिक सम्पदा को एक जिल्द में समेटने का प्रयास है ! विशेषज्ञ विद्वानों द्वारा लिखे आलेखों के अलावा पुस्तक में विवेकानंद का चर्चित शिकागो व्याख्यान भी प्रस्तुत किया गया है और कुछ अन्य सामग्री भी जो उन्हें समग्रता में समझने में सहायक होगी !
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